शिव लिंग का रहस्य जानकर आप दंग रह जाएंगे
शिव लिंग पूजा :- जो अपने धर्मगुरूओं द्वारा बताई गई धार्मिक साधना कर
रहे हैं, वे पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं कि यह साधना सही है। इसलिए वे अंधविश्वास
(ठसपदक थ्ंपजी) किए हुए हैं।https://youtu.be/SxyvVVBx-Io
इस शिव लिंग पर प्रकाश डालते हुए मुझे अत्यंत दुःख व शर्म का एहसास
हो रहा है। परंतु अंधविश्वास को समाप्त करने के लिए प्रकाश डालना अनिवार्य
तथा मजबूरी है।
शिव लिंग (शिव जी की पेशाब इन्द्री) के चित्रा में देखने से स्पष्ट होता है
कि शिव का लिंग (च्तपअंजम च्ंतज) स्त्रा की लिंगी (पेशाब इन्द्री यानि योनि) में
प्रविष्ट है। इसकी पूजा हिन्दू श्रद्धालु कर रहे हैं।
शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई?
शिव महापुराण {जिसके प्रकाशक हैं ‘‘खेमराज श्री कृष्णदास प्रकाशन मुंबई
(बम्बई), हिन्दी टीकाकार (अनुवादक) हैं विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद जी
मिश्र} भाग-1 में विद्यवेश्वर संहिता अध्याय 5 पृष्ठ 11 पर नंदीकेश्वर यानि शिव
के वाहन ने बताया कि शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई? विद्यवेश्वर संहिता अध्याय 5 श्लोक 27.30 :- पूर्व काल में जो पहला कल्प
जो लोक में विख्यात है। उस समय महात्मा ब्रह्मा और विष्णु का परस्पर युद्ध
हुआ।(27) उनके मान को दूर करने को उनके बीच में उन निष्कल परमात्मा ने
स्तम्भरूप अपना स्वरूप दिखाया।(28) तब जगत के हित की इच्छा से निर्गुण शिव
ने उस तेजोमय स्तंभ से अपने लिंग आकार का स्वरूप दिखाया।(29) उसी दिन
से लोक में वह निष्कल शिव जी का लिंग विख्यात हुआ।(30)
विद्यवेश्वर संहिता पृष्ठ 18 अध्याय 9 श्लोक 40.43 :- इससे मैं अज्ञात
स्वरूप हूँ। पीछे तुम्हें दर्शन के निमित साक्षात् ईश्वर तत्क्षणही मैं सगुण रूप हुआ
हूँ।(40) मेरे ईश्वर रूप को सकलत्व जानों और यह निष्कल स्तंभ ब्रह्म का बोधक
है।(41) लिंग लक्षण होने से यह मेरा लिंग स्वरूप निर्गुण होगा। इस कारण हे पुत्रो!
तुम नित्य इसकी अर्चना करना।(42) यह सदा मेरी आत्मा रूप है और मेरी
निकटता का कारण है। लिंग और लिंगी के अभेद से यह महत्व नित्य पूजनीय है।(43)
विवेचन :- यह विवरण श्री शिव महापुराण (खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाश
मुंबई द्वारा प्रकाशित) से शब्दाशब्द लिखा है। इसमें स्पष्ट है कि काल ब्रह्म ने
जान-बूझकर शास्त्रा विरूद्ध साधना बताई है क्योंकि यह नहीं चाहता कि कोई
शास्त्रों में वर्णित साधना करे। इसलिए अपने लिंग (गुप्तांग) की पूजा करने को कह
दिया। पहले तो तेजोमय स्तंभ ब्रह्मा तथा विष्णु के बीच में खड़ा कर दिया। फिर
शिव रूप में प्रकट होकर अपनी पत्नी दुर्गा को पार्वती रूप में प्रकट कर दिया और
उस तेजोमय स्तंभ को गुप्त कर दिया और अपने लिंग (गुप्तांग) के आकार की
पत्थर की मूर्ति प्रकट की तथा स्त्रा के गुप्तांग (लिंगी) की पत्थर की मूर्ति प्रकट
की। उस पत्थर के लिंग को लिंगी यानि स्त्रा की योनि में प्रवेश करके ब्रह्मा तथा
विष्णु से कहा कि यह लिंग तथा लिंगी अभेद रूप हैं यानि इन दोनों को ऐसे ही
रखकर नित्य पूजा करना।
इसके पश्चात् यह बेशर्म पूजा सब हिन्दुओं में देखा-देखी चल रही है। आप
मंदिर में शिवलिंग को देखना। उसके चारों ओर स्त्रा इन्द्री का चित्रा है जिसमें
शिवलिंग प्रविष्ट दिखाई देता है। यह पूजा काल ब्रह्म ने प्रचलित करके मानव
समाज को दिशाहीन कर दिया। वेदों तथा गीता के विपरीत साधना बता दी।
आप जी ने ऊपर शिव पुराण भाग-1 में विद्यवेश्वर संहिता के पृष्ठ 11 पर
अध्याय 5 श्लोक 27.30 में पढ़ा कि शिव ने जो तेजोमय स्तंभ खड़ा किया था। फिर
उस स्तंभ को गुप्त करके पत्थर को अपने लिंग (गुप्तांग) का आकार दे दिया और
बोला कि इसकी पूजा किया करो। इस तरह की बकवाद तो शरारती बच्चा जो
पुराने समय में पशु चराता था, वह पाली किया करता जो वाद-विवाद में अन्य
बालक से कहता था कि ले मेरे इस (गुप्तांग) की धोक मार ले। यही दशा शिवलिंग
की पूजा बताने वाले काल ब्रह्म यानि सदाशिव की है जो ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव
जी के पूज्य पिता जी हैं।
चेतावनी :- वक्त है, अब भी संभल जाओ। नहीं तो मानव जीवन का अवसरजी के पूज्य पिता जी हैं।
चेतावनी :- वक्त है, अब भी संभल जाओ। नहीं तो मानव जीवन का अवसर। हाथ से जाने के पश्चात् रोने के अतिरिक्त कुछ नहीं रहेगा। गीता व वेदों का ज्ञान
परम अक्षर ब्रह्म का बताया हुआ है। इसलिए वह प्रमाणित व लाभदायक है।
आप देखें यह शिव लिंग का चित्रा :-
रहे हैं, वे पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं कि यह साधना सही है। इसलिए वे अंधविश्वास
(ठसपदक थ्ंपजी) किए हुए हैं।https://youtu.be/SxyvVVBx-Io
इस शिव लिंग पर प्रकाश डालते हुए मुझे अत्यंत दुःख व शर्म का एहसास
हो रहा है। परंतु अंधविश्वास को समाप्त करने के लिए प्रकाश डालना अनिवार्य
तथा मजबूरी है।
शिव लिंग (शिव जी की पेशाब इन्द्री) के चित्रा में देखने से स्पष्ट होता है
कि शिव का लिंग (च्तपअंजम च्ंतज) स्त्रा की लिंगी (पेशाब इन्द्री यानि योनि) में
प्रविष्ट है। इसकी पूजा हिन्दू श्रद्धालु कर रहे हैं।
शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई?
शिव महापुराण {जिसके प्रकाशक हैं ‘‘खेमराज श्री कृष्णदास प्रकाशन मुंबई
(बम्बई), हिन्दी टीकाकार (अनुवादक) हैं विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद जी
मिश्र} भाग-1 में विद्यवेश्वर संहिता अध्याय 5 पृष्ठ 11 पर नंदीकेश्वर यानि शिव
के वाहन ने बताया कि शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई? विद्यवेश्वर संहिता अध्याय 5 श्लोक 27.30 :- पूर्व काल में जो पहला कल्प
जो लोक में विख्यात है। उस समय महात्मा ब्रह्मा और विष्णु का परस्पर युद्ध
हुआ।(27) उनके मान को दूर करने को उनके बीच में उन निष्कल परमात्मा ने
स्तम्भरूप अपना स्वरूप दिखाया।(28) तब जगत के हित की इच्छा से निर्गुण शिव
ने उस तेजोमय स्तंभ से अपने लिंग आकार का स्वरूप दिखाया।(29) उसी दिन
से लोक में वह निष्कल शिव जी का लिंग विख्यात हुआ।(30)
विद्यवेश्वर संहिता पृष्ठ 18 अध्याय 9 श्लोक 40.43 :- इससे मैं अज्ञात
स्वरूप हूँ। पीछे तुम्हें दर्शन के निमित साक्षात् ईश्वर तत्क्षणही मैं सगुण रूप हुआ
हूँ।(40) मेरे ईश्वर रूप को सकलत्व जानों और यह निष्कल स्तंभ ब्रह्म का बोधक
है।(41) लिंग लक्षण होने से यह मेरा लिंग स्वरूप निर्गुण होगा। इस कारण हे पुत्रो!
तुम नित्य इसकी अर्चना करना।(42) यह सदा मेरी आत्मा रूप है और मेरी
निकटता का कारण है। लिंग और लिंगी के अभेद से यह महत्व नित्य पूजनीय है।(43)
विवेचन :- यह विवरण श्री शिव महापुराण (खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाश
मुंबई द्वारा प्रकाशित) से शब्दाशब्द लिखा है। इसमें स्पष्ट है कि काल ब्रह्म ने
जान-बूझकर शास्त्रा विरूद्ध साधना बताई है क्योंकि यह नहीं चाहता कि कोई
शास्त्रों में वर्णित साधना करे। इसलिए अपने लिंग (गुप्तांग) की पूजा करने को कह
दिया। पहले तो तेजोमय स्तंभ ब्रह्मा तथा विष्णु के बीच में खड़ा कर दिया। फिर
शिव रूप में प्रकट होकर अपनी पत्नी दुर्गा को पार्वती रूप में प्रकट कर दिया और
उस तेजोमय स्तंभ को गुप्त कर दिया और अपने लिंग (गुप्तांग) के आकार की
पत्थर की मूर्ति प्रकट की तथा स्त्रा के गुप्तांग (लिंगी) की पत्थर की मूर्ति प्रकट
की। उस पत्थर के लिंग को लिंगी यानि स्त्रा की योनि में प्रवेश करके ब्रह्मा तथा
विष्णु से कहा कि यह लिंग तथा लिंगी अभेद रूप हैं यानि इन दोनों को ऐसे ही
रखकर नित्य पूजा करना।
इसके पश्चात् यह बेशर्म पूजा सब हिन्दुओं में देखा-देखी चल रही है। आप
मंदिर में शिवलिंग को देखना। उसके चारों ओर स्त्रा इन्द्री का चित्रा है जिसमें
शिवलिंग प्रविष्ट दिखाई देता है। यह पूजा काल ब्रह्म ने प्रचलित करके मानव
समाज को दिशाहीन कर दिया। वेदों तथा गीता के विपरीत साधना बता दी।
आप जी ने ऊपर शिव पुराण भाग-1 में विद्यवेश्वर संहिता के पृष्ठ 11 पर
अध्याय 5 श्लोक 27.30 में पढ़ा कि शिव ने जो तेजोमय स्तंभ खड़ा किया था। फिर
उस स्तंभ को गुप्त करके पत्थर को अपने लिंग (गुप्तांग) का आकार दे दिया और
बोला कि इसकी पूजा किया करो। इस तरह की बकवाद तो शरारती बच्चा जो
पुराने समय में पशु चराता था, वह पाली किया करता जो वाद-विवाद में अन्य
बालक से कहता था कि ले मेरे इस (गुप्तांग) की धोक मार ले। यही दशा शिवलिंग
की पूजा बताने वाले काल ब्रह्म यानि सदाशिव की है जो ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव
जी के पूज्य पिता जी हैं।
चेतावनी :- वक्त है, अब भी संभल जाओ। नहीं तो मानव जीवन का अवसरजी के पूज्य पिता जी हैं।
चेतावनी :- वक्त है, अब भी संभल जाओ। नहीं तो मानव जीवन का अवसर। हाथ से जाने के पश्चात् रोने के अतिरिक्त कुछ नहीं रहेगा। गीता व वेदों का ज्ञान
परम अक्षर ब्रह्म का बताया हुआ है। इसलिए वह प्रमाणित व लाभदायक है।
आप देखें यह शिव लिंग का चित्रा :-
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