Header Ads

Header ADS

Merical of god kabir

Miracles of Kabir Saheb

कबीर साहेब के चमत्कार 



परमेश्वर कबीर साहेब द्वारा इस लोक में ऐसे कई चमत्कार किए गए हैं जो मात्र ईश्वर द्वारा किए जा सकते हैं। किसी मायावी अथवा साधारण व्यक्ति द्वारा यह संभव नहीं हैं जैसे मुर्दे को जीवित करना यह शक्ति मात्र ईश्वर के पास होती है तथा इसके अतिरिक्त भैंसों से वेद मंत्र बुलवाना, सिकंदर लोदी के जलन का रोग ठीक करना तथा काशी में बहुत विशाल भंडारे का आयोजन करना इसके अतिरिक्त भी कई प्रमाणिक जानकारियां हमें मिलती है।


1. कबीर साहेब द्वारा सिकंदर राजा का जलन का रोग ठीक करना


कबीर साहेब जब 600 वर्ष पूर्व आए तब उन्होंने अनेको करिश्में दिखाऐ, उनमें से एक है दिल्ली के राजा सिकंदर लोदी की जलन का रोग आशिर्वाद मात्र से ठीक करना। राजा जलन जैसे आसाध्य रोग से पीड़ित था और सब तरफ से ईलाज आदि करवाकर थक चुका था लेकिन कोई आराम नहीं था। तब बादशाह को किसी ने कबीर साहेब के बारे में बताया कि वे महापुरुष ही ये रोग ठीक कर सकते हैं तभी सिकंदर को भी याद आया कि यह तो वही हैं जिन्होंने मरी हुई गाय को जीवित कर दिया था। जब खुद पर आपदा आती है तो कोई जाति व अमीरी गरीबी नहीं देखता उसे सिर्फ अपनी जान बचाने की सूझती है। इसी प्रकार दिल्ली नरेश भी काशी पहुंचा औऱ वहाँ के राजा वीरदेव सिंह बघेल तो कबीर जी को पूर्ण परमात्मा के रूप में पहचान चुके थे। सिकंदर लोदी ने सब व्यथा वीरदेव सिंह बघेल को बताई तो उन्होंने भी कहा कि कबीर जी ही उन्हें रोग मुक्त कर सकते है और वे आश्रम की ओर चल पड़े। वहां राजा सिकंदर लोदी ने अहंकार वश रामानंद जी (जो कबीर साहेब को परमात्मा रूप में पहचान चुके थे लेकिन सबके सामने कबीर जी के गुरू का अभिनय कर रहे थे) का  किसी बात की कहासुनी पर वध कर दिया राजा बहुत घबरा गया कि एक पाप का बोझ तो उतरा भी नहीं कि एक बडा़ पाप और इकट्ठा कर लिया। राजा को डर था कि कबीर जी उन्हें माफ करेंगे भी या नहीं लेकिन फिर भी कबीर परमात्मा ने राजा को सांत्वना देते हुए आशिर्वाद दिया जिससे पल भर में ही उनका जलन का रोग गायब हो गया तथा कबीर साहेब जी ने अपने गुरुदेव स्वामी रामानंद जी को भी वापस जीवित कर दिया। उसके पश्चात् रामानंद जी ने कभी हिंदू-मुसलमान मे भेदभाव नही किया तथा सिकंदर लोदी ने कहा की:-

कबीर दर्शन दीन्हा जबै, तपन भई सब दूर । 

शाह कहा तुम साँच हो, औ अल्लाहका नूर ।।




2. मुर्दे को जीवित करना 

कबीर साहेब के चमत्कारो में से एक मुर्दों को भी जीवित करना, इसके दो सटीक उदाहरण है जिनमें कमाल और कमाली जो दोनों ही मृत थे।

कमाल को जीवित करना

दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी के पीर शेखतकी बादशाह सिकंदर से नाराज हो गए इसका कारण पूछने पर पीर शेखतकी की  ने बताया की वह कबीर साहेब की परीक्षा लेना चाहता है  अगर उस कबीर ने मुर्दे को जिंदा कर दिया तो वह मान लेगा कि वह भगवान है। यह बात जानकर राजा ने कबीर साहेब से प्रार्थना की और सारी समस्या बताई। इस पर कबीर साहिब ने कहा ठीक है और एक सुबह वह सब नदी के किनारे पर खड़े हुए थे वहां पर कबीर साहेब सिकंदर लोदी और उसका पीर शेखतकी भी था। तभी नदी में 10 -12 वर्ष का मृत लड़के का शव बहता हुआ दिखाई दिया। तभी कबीर साहिब ने शेखतकी से कहा कि हे! पीर पहले आप इस मुर्दे को जिंदा करने की कोशिश करें। इस बात पर वहां पर उपस्थित मंत्रियों  और अन्य लोगों  द्वारा शेखतकी  को कहा गया  कि मुर्दे को  जिंदा करें। तभी शेखतकी पीर ने अपनी सारी तंत्र मंत्र की विद्या करता रहा  इतने में वह मुर्दा बहता हुआ आगे चला गया। तो उस पीर ने कहा की मुर्दे थोड़ी जिंदा होते हैं, यह कबीर हम सबको भ्रमित कर,  मुर्दे के बहने का इंतजार कर रहा है। फिर परमात्मा कबीर साहिब ने हाथ से इशारा किया और वह मुर्दा पानी के वेग के विपरीत दिशा  मे चल कर कबीर साहिब के सामने आकर रुक गया। पानी की लहरें नीचे से बह रही थी और मृत लड़का उसके ऊपर रुका  था। कबीर साहिब ने कहा कि हे! जीवात्मा जहां भी है कबीर हुकम से मुर्दे में प्रवेश कर और खडा हो। कबीर साहिब ने इतना कहा ही था की शव में कंपन हुई तथा जीवित होकर खडा हो गया। कबीर साहेब के चरणों में दंडवत प्रणाम किया।  परमात्मा की जयकार लगाई और सबको बताया कि कबीर साहिब ही पूर्ण परमात्मा है। वहां पर सभी उपस्थित जनों ने कहा की कबीर साहिब ने तो कमाल कर दिया। तो उस लड़के का नाम कमाल ही रख दिया गया।




कमाली को जीवित करना

शेखतकी ने देखा यह कबीर तो किसी प्रकार काबु में नहीं आ रहा है, तब शेखतकी ने जनता से कहा कि यह कबीर जादूगर है ऐसे ही जंतर-मंतर दिखाकर आम जनता और बादशाह सिकंदर  की बुद्धि भ्रष्ट कर रखी है। सारे मुसलमानों से कहा कि तुम मेरा साथ दो वरना बात बिगड़ जाएगी। तब मुसलमानों ने कहा कि जैसे तुम कहोगे हम ऐसे ही करेंगे। शेखतकी ने कहा कि इस कबीर को तब भगवान मानेंगे जब मेरी लड़की को जीवित कर देगा, जो कब्र में दबी हुई है और सब जगह ढिंडोरा पिटवा दूंगा की कबीर ही भगवान है। बादशाह सिकंदर ने परमात्मा कबीर साहिब से प्रार्थना की कि वह शेखतकी की लड़की को जिंदा  कर दे। बादशाह सिकंदर को परमात्मा पर विश्वास था क्योंकि वह परमात्मा के चमत्कारो से वाकिफ था। तब हजारों की संख्या में लोग कब्र के पास इकट्ठा हो गए और दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी भी अपने मंत्रीमंडल के साथ गए और कब्र को फुड़वाया गया। तब फिर  परमात्मा कबीर साहिब ने पीर शेखतकी से कहा की तू अपनी लड़की को जिंदा करने की कोशिश कर ले। सभी उपस्थित जनों ने कहा इसके पास कुछ नहीं है आप ही दया करें। फिर कबीर साहिब ने तीन कहा की शेखतकी की लड़की तू जिंदा हो जा, पर वह जिंदा नहीं हुई। इस पर शेखतकी बहुत खुश हुआ, उसे अपनी लड़की के जिंदा न होने का दुख नहीं हुआ।  

कबीर राज तजना सहज है सहज त्रिया का नेह!  

     मान बड़ाई ईर्ष्या, दुर्बल तजना ये॥

  कबीर साहिब ने कहा हे जीवात्मा तू जहां कहीं भी है इस लड़की के शरीर में प्रवेश कर। इतना कहते ही वह लड़की जीवित हो गई। तथा कबीर साहिब जी को दंडवत प्रणाम किया। यह देख सब लोगों ने कहा कि कमाल कर दिया और इस वजह से उस लड़की का नाम कमाली रखा गया।


3. काशी में बहुत बड़ा भंडारा करना

कबीर परमेश्वर को काशी शहर से भगाने के उद्देश्य से हिंदूओ तथा मुसलमानों के धर्मगुरुओं ने  षड्यंत्र के तहत झूठी चिट्ठी में निमंत्रण भेजा कि कबीर जुलाहा  3 दिन का भोजन भंडारा करेगा। शेख तकी जो राजा सिकंदर  लोधी का धार्मिक गुरु था वह इसका मुख्य षड्यंत्रकारी था लेकिन कबीर परमात्मा समर्थ है।  कबीर जी स्वयं अपने भक्त रविदास के साथ कुटीया में विराजमान थे और अपनी लीला करते हुए उन्होंने सतलोक से नो  लाख बैलों तथा कुछ बंजारे वाले वेश में भगत सेवादार लिए तथा स्वयं कबीर साहिब ने केशव बंजारे का रूप धारण किया और अपने निजधाम सतलोक से काशी शहर में एक क्षण में पृथ्वी के ऊपर आ गए। भंडारा इतना अदभुत था कि सभी तरह की सुविधाएं व अनेकों प्रकार के पकवान कोई कितनी बार भी खाए किसी तरह की कोई रोक-टोक नहीं थी। भंडारा करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मोहर और दोहर भी दी जा रही थी, चाहे वह कितनी बार ही भंडारा करो हर बार मोहर और दोहर दी जा रही थी।
राजा सिकंदर लोदी भी इस तरह के भंडारे को देखकर आश्चर्यचकित हो गया जब उन्होंने  केशव बंजारे से बातचीत की तो उन्होंने पूछा की कबीर साहेब कहाँ है, तो केशव बंजारे ने कहा  कि आ जाएंगे प्रभु जब दया होगी तो केशव बंजारे ने कहा यह तो छोटा सा भंडारा है, मैं तो कबीर  जुलाहे का पगड़ी बदल यार हूँ।
उस वक़्त कबीर परमेश्वर जुलाहे रूप में अपने भगत रविदास के साथ अपनी कुटिया में विराजमान थे।
सिकंदर लोदी इस तरह के भंडारे को देखकर कबीर परमेश्वर की कुटिया की तरफ गए और उन्हें  सम्मानपूर्वक अपने हाथी के ऊपर बिठा कर लाए, जहां भंडारा चल रहा था। चारों तरफ कबीर परमेश्वर की जय-जयकार हो रही थी। काशी शहर के लोग चर्चा कर रहे थे कि आज तक ऐसा भंडारा  नहीं देखा लेकिन वहाँ शेख़तकी पीर जो की राजा सिकंदर लोधी का धार्मिक गुरु था, वह कबीर साहेब जी से इर्ष्या वश होकर कहने लगा की "क्या भंडारा किया है, ऐसा तो हम रोज कर दे।"

इस विषय मे परमात्मा की वाणी है:-
कोई कहे जग जोनार करी है, कोई कहे महोछा।
बड़े बड़ाई किया करे, गाली काढ़े ओछा।।


4. सेऊ-सम्मन की कथा

एक समय कबीर साहेब अपने भक्त सम्मन के यहाँ अचानक दो सेवकों (कमाल व शेखफरीद) के साथ पहुँच गए। सम्मन के घर कुल तीन प्राणी थे:-सम्मन, सम्मन की पत्नी नेकी और सम्मन का पुत्र सेऊ (शिव)। भक्त सम्मन इतना गरीब था कि कई बार अन्न भी घर पर नहीं होता था, सारा परिवार भूखा सो जाता था और आज वही दिन था। भक्त सम्मन ने अपने गुरुदेव कबीर साहेब से पूछा कि साहेब खाने का विचार बताएँ, खाना कब खाओगे? कबीर साहेब ने कहा कि भाई भूख लगी है, भोजन बनाओ। सम्मन अन्दर घर में जा कर अपनी पत्नी नेकी से बोला कि अपने घर अपने गुरुदेव भगवान आये है, उनके लिए भोजन बनाओ। तभी नेकी ने कहा घर मे कुछ नही है बनाने के लिये, तब उसने सोचा पड़ोस से मांग लू , लेकिन सबने कहा कि "तुम्हारे घर तुम कहते हो भगवान  आये है कबीर जी, तो अब हमारे घर क्यों आये हो"? तभी सम्मन ने कहा एक सेठ है उसकी खिड़की से आटा चोरी करके ले आए। सेउ को भेजा खिड़की से आटा लेने के लिये, तब जैसे ही सेउ अंदर गया, सेठ उठ गया और सेउ ने आटा बाहर अपने पिता सम्मन को दे दिया वो घर आया , नेकी ने पूछा कहाँ है सेउ? तो सम्मन ने कहा सेठ ने पकड़ लिया, तब नेकी ने कहा- उसकी गर्दन काट लाओ अगर उसका चेहरा किसी ने देखा तो हमारे भगवान में दोष निकालेंगे, की यह कबीर जी के शिष्य है, फिर सम्मन सेउ की गर्दन काट लाता है और फिर नेकी खाना बनाती है, तब तीन थाली में खाना अलग अलग रखती है। कबीर जी के साथ दो शिष्य भी थे, तब कबीर जी ने कहा की छः थालियों में भंडरा लगाओ, नेकी 6 थालियों मे भोजन लगा देती है। लेकिन मन में सोचती है सेउ तो मर गया है, लेकिन कबीर साहेब तो अंतर्यामी है, उन्होंने कहा "शीश तो चोरों के कटते है भगतों के नही", तभी सेउ के शीश लग जाता है और कही खरोच तक नही थी।


जो चावे सो करदे सतगुरु, भ्रम पड़ो मत कोई। 

सेउ धड़ पर शीश चढ़ाया, पीछे करी रसोई।।



5. भैंसे से वेद मंत्र बुलवाना

कबीर साहेब जी एक लीला स्वरूप स्वामी रामानन्द जी को गुरु बनाये ताकि गुरु पद्दति बनी रहे। कबीर साहेब जी ने स्वामी रामानन्द जी को तत्वज्ञान कगया जिससे रामानन्द जी जान गए थे कि कबीर साहेब स्वयं परमेश्वर हैं। वे कबीर साहेब जी द्वारा बताए मन्त्र जाप करते थे लेकिन लोगों की नजरों में कबीर परमात्मा जी के गुरू कहलाये। स्वामी रामानन्द जी जहाँ भी किसी सत्संग-समागम में जाते थे तो कबीर जी को साथ लेकर जाते थे। एक समय एक तोताद्री नामक स्थान पर सत्संग था। दूर-दूर के ब्राह्मण, पण्डित लोग वहाँ पधारे। स्वामी रामानन्द जी भी परमेश्वर कबीर जी के साथ उस सत्संग में शामिल हुए। उस समागम में एक महामंडलेश्वर आया हुआ था। वह  सत्संग कर रहा था व प्रसंग चल रहा था कि रामचंद्र जी ने भीलनी के झूठे बेर खाये। इसी तरह साधु सन्तो को भी सहनशील स्वभाव का होना चाहिए।
सत्संग के पश्चात् भोजन-भण्डारा शुरू हुआ। मुख्य पाण्डे को पता चला कि स्वामी रामानन्द जी के साथ कबीर आया हुआ है वह जुलाहा जाति से है। वह रामानन्द के साथ ब्राह्मणों वाले पांडाल  में भोजन करने के लिए साथ आएगा, यदि मना करेंगे तो रामानन्द जी नाराज हो जाऐंगे
उन्होंने एक योजना बनाई और  कहा कि जो ब्राह्मणों वाले भण्डारे में भोजन करेंगे उनको वेद के चार मन्त्र सुनाने होंगे। सभी ब्राह्मण  पंडित चार-चार वेद मन्त्र सुना कर प्रवेश हो रहे थे।
जब कबीर जी की बारी आई तो उनसे भी कहा कि चार वेद मन्त्र सुनाओ। तब परमेश्वर ने देखा कि थोड़ी-सी दूरी पर एक भैंसा घास चर रहा था, परमेश्वर कबीर जी ने भैंसे को हुर्र कह कर पुकारा और वह दौड़ा-दौड़ा आया।
तब कबीर जी ने उस भैंसे की कमर पर हाथ से थपकी लगाई और कहा कि भैंसा जी इन पंडितों को वेद के चार मन्त्र सुनाओ और भैंसे ने 6 मन्त्र सुना दिए। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि भैंसा जी पंडितों को अनुवाद भी करके सुना दे। भैंसे ने शुद्ध उच्चारण करके वेदों के मन्त्रो का अनुवाद भी किया कि कविर्देव ही  परम शान्ति दायक हैं, वह पापों का नाश करने वाले बन्दी छोड़ कविर्देव है। वह पूर्ण परमात्मा अपने तेजोमय स्वरूप को कम करके अपने लोक से चल कर आता है। अच्छी आत्माओं को मिलता है, वह परमेश्वर आपके पास यह कबीर धानक खड़ा है।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा- "हे भैंसा आप ब्राह्मणों वाले पांडाल  में भोजन खाओ, मैं तो सामान्य भण्डारे में प्रसाद पा लूंगा"।  उपस्थित पंडित शर्म से लज्जित हो गये तथा वहाँ उपस्थित  हजारों की संख्या में श्रद्धालुओ ने कबीर परमेश्वर से नाम दीक्षा ली।



कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.